स्वीकार्य (Acceptance)🍁
जरूरी नहीं कि हमेशा आप ही सही हो और सामने
हर समय सही बने रहने की ज़िद आपके स्वभाव को रूड बनाती हैं, आपके ओपिनियंस कंजरवेटिव किस्म के हो जाते हैं और आप खुद को वेगाबाउंड (एकाकी) बना लेते हैं। अगर आप यह एक्सेप्ट कर ले कि पूरे लाइफटाइम में आप सही होने से ज़्यादा कई बार गलत हो सकते है तो यह एक्सेप्टेंस आपको विचारशील (thoughtful) इंसान बनाती हैं।
जीवन इस मायने में कितना जटिल (complex) है कि यह कई बार आपके कंपटीटर्स को भी सही होने का मौका देती हैं। एक व्यक्ति का जीवन मिक्सड इमोशंस, कॉन्ट्रडिक्शन, उथल- पुथल से भरा होता है। कभी- कभी कोई सही नहीं हो सकता है, जब हम दूसरों को सही होने देते हैं, तो हम अलग अलग पर्सपेक्टिव (Perspective) को एक्सेप्ट करने के साथ - साथ उनको वैलिडेट करते है।
मेरे विचार से जजमेंटल टाइप के लोग दूसरो को सही होने का मौका नहीं देते है। कंक्लूजन यह निकलता है कि इस तरीके का व्यवहार आपकी पर्सनेलिटी को ओवरशेडो कर देता है और आप अपने बेसिक नेचर से दूर होते चले जाते है। यह एक्सेप्ट कर लेना कि “मैं गलत हूं” यह आपके पर्सपेक्टिव को ब्रॉड बनाता हैं, साथ ही जीवन को कैसे जिया जाए उसके लिए नए विचारों से आपका परिचय होता है।
जब आपके मन में एक्सेप्टेंस की भावना आ जाती है, तब आपको इस बात का सेल्फ रियलाइजेशन होता है कि आप कहां गलत थे और कहां लैक (Lack) कर रहे थे। सेल्फ रियलाइजेशन होने से आप खुद को ग्रूम करते हैं और ओपिनियोनेटेड बनते हैं।
स्वीकार करे की आप भी गलत हो सकते है! एक्सेप्ट कर लेने से आपकी इज्ज़त कभी कम नहीं होती बल्कि दूसरों की ताकत और कमज़ोरी का असेसमेंट (आकलन) करने में आपको मदद मिलती है।
Be humble! You could be wrong.

Comments
Post a Comment