सिंदूरदान (Sindurdaan) 🌺



यद्यपि भारत में प्रत्येक राज्यों की सांस्कृतिक प्रणाली की अपनी विशिष्टता है तथापि जब मिथिलांचल का विषय प्रस्तुत होता है, तो यहां की सांस्कृतिक पद्धति इतनी अद्भुत और वैज्ञानिक हैं कि किसी को भी आश्चर्यचकित कर सकती हैं। धर्मशास्त्र में वर्णित जितने सात्विक दान है उनमें कन्यादान का महत्व सर्वोपरि है। यह यज्ञ के रूप में प्रतिष्ठित है और इसमें सिंदूरदान की परिचर्चा शब्दों से परे है। मिथिलांचल में विवाह संस्कार सीता और राम के विवाह उत्सव के अनुरूप ही संपन्न किये जाते हैं। मिथिला में यह परंपरा अनादि काल से प्रचलित है जिसका एक विशिष्ट सौंदर्य हैं। पूरे मिथिला क्षेत्र में विवाह के गीतों में माता सीता और भगवान राम का भरपूर उल्लेख किया जाता है। गीत के बोल इस प्रकार हैं -

“पाहुन सिन्दूर लियऽ हाथ सोन सुपारी के साथ

सीता उघारि लियऽ माथ सिन्दूर लेबऽ लए

बीति रहल अछि लग्न अहाँ धनुष कयलौं भंग

सब छथि आनन्दमग्न आशीष देबऽ लए

रघुवर शिर शोभनि मौर सीता सब दिन पुजथि गौर

आजु पूजल हमर और नृपति होबऽ लए”

मिथिलांचल की विधिवत पंरपरा की बात करें तो विवाह वाले दिन दुल्हन सुबह स्नान करके नए कपड़े पहनती है और पूरा दिन खुले बालों में रहती है। दुल्हन जो कपड़े पूरे दिन पहनती है वह कपड़े धोबिन को दे दिये जाते हैं, क्योंकि धोबिन को उसके लिए सुहाग दाता माना जाता है। दुल्हन को धोबिन का आशीर्वाद मिलता है। ऐसा माना जाता है कि धोबी की पत्नी आजीवन सुहागिन रहती है।

मैथिल विवाह संस्कार में सिंदुरदान का अपना एक खास महत्व है। सिंदूरदान से पहले विधकरी दुल्हन के बालों को दो भागों में बांटती हैं जिसे मिथिला में सीथ या मांग निकालना बोलते हैं, उसके बाद दुल्हे के द्वारा दुल्हन की मांग भरी जाती है, जिसे सिन्दूरदान (Sindurdaan) कहा जाता है। मैथिल विवाह में पारंपरिक सिन्दूर को “भुस्ना सेनूर”, सिन्दूर (Bhusna Sindoor) कहते हैं। मिथिला में विवाह की रात दुल्हन के सीथ/मांग में जो सिन्दूर लगाया जाता है वह लाल सिन्दूर नहीं होता बल्कि, यह उनका अपना पारंपरिक सिन्दूर है जिसे भुस्ना सिन्दूर के नाम से जाना जाता है और यह सिंदूर गुलाबी रंग का होता है। दुल्हन के प्राथमिक पवित्र चिन्हों में से एक है “सिन्दूर”। मिथिला में दनाही (Danahi) विधि ( Ritual) के बाद से ही विवाहित महिलाओं द्वारा लाल सिंदूर/सेनूर (Senur) लगाया जाता है।

मिथिला क्षेत्र में विवाह के बाद गौर पूजन (Gaur Pujan या गौर पुजनाय) की परंपरा है , इस विधि में नवविवाहिता वधु अपनी मांग में सिंदूर लगाते वक्त मां गौरी के मंत्र का तीन बार मंत्रोच्चारण करती है , यह मंत्र इस प्रकार हैं - 

“ऐली गौरी महामाय, चन्दन डार तोरैत ऐली।

फूलक हार गुंथैत ऐली, सोहगबाग बाँटैत ऐली।

अपने लेली फूलक हार, हमरा देली सोहगभाग।

गौरी शिव नमोस्तुते, नमोस्तुते, नमोस्तुते।”

यह परिपाटी मिथिला की समृद्ध संस्कृति की पहचान हैं। मिथिला में विवाहित महिलाएं विवाह के अगले दिन से‌ ही इस मंत्रोच्चार के द्वारा मां गौरी की अराधना करती हैं‌ और यह विधि आजीवन सौभाग्य एवं ऋद्धि-सिद्धि के प्रतिक के रूप में व्यवहार मे लायी जाती हैं। मिथिला में सिंदूर रखने वाले डिब्बे को सिंदूरदानी( Sindurdaani) या सपरी (Sapri) के नाम से जाना जाता है। 


परंपरागत रूप से सिन्दूर हल्दी, चूना, फिटकरी, पारा या केसर जैसे कार्बनिक/प्राकृतिक और हर्बल पदार्थों से बना होता है। यह नई दुल्हन के चेहरे को बेहद खूबसूरत बनाता है। मां गौरी को सुहाग का प्रतीक माना जाता है, इसलिए विवाहित स्त्री को "अखंड सौभाग्यवती भव" का आशीर्वाद दिया जाता है।

मिथिला क्षेत्र में सिंदूरदान का संस्कार हमारे प्रधान‌ देवता अग्नि को साक्षी रखके अनुष्ठित किया जाता है। यह पारस्परिक विश्वास, समर्पण की प्रतिज्ञा को बलवती (मजबूत) करती है।


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